छन्द के छ : उल्लाला

जिनगी (उल्लाला – १३,१३ मा यति ,बिसम-सम तुकांत)

जिनगी के दिन चार जी, हँस के बने गुजार जी
दुख के हे अँधियार जी, सुख के दियना बार जी
नइ हे खेवन-हार जी , धर मन के पतवार जी
तेज नदी के धार जी, झन हिम्मत तयँ हार जी

गुरू – १ (उल्लाला – १३,१३मा यति, सम-सम तुकांत)

दुख के पाछू सुख हवे, गोठ सियानी मान ले
बिरथा नइ जाये कभू , संत गुरु के ग्यान ले
गुरू बड़े भगवान ले , हरि दरसन करवाय जी
गुरू साधना मा जरै , अउ अँजोर बगराय जी

गुरु – २ (उल्लाला – १५,१३ मा यति, सम-सम तुकांत)

तँय घुनही घन्नई बइठ झन, बुड़ो दिही मँझधार मा
गुन बिना गुरू पतवार के , कोन उतरही पार मा
सुन तीन लोक के देव मन, जपैं गुरू के नाम ला
जब पावैं आसिरवाद तब, सुरु करैं उन काम ला

उल्लाला – ये छन्द २ किसिम के होथे १३,१३ मातरा मा यति वाले अउ १५,१३ मातरा म यति वाले
डाँड़ (पद) – २, ,चरन – ४
तुकांत के नियम –
१३-१३ मातरा मा यति वाले उल्लाला मा बिसम-सम चरन मा तुकांत भी होथे अउ सम-सम चरन मा तुकांत भी होथे.
१५-१३ मातरा मा यति वाले उल्लाला मा सिरिफ सम-सम चरन मा तुकांत माने जाथे.
हर डाँड़ मा मातरा १३-१३ मातरा वाले उल्लाला मा २६ अउ १५-१३ मातरा वाले उल्लाला मा २८ मातरा
यति / बाधा – १३, १३ मातरा मा अउ १५-१३ मातरा मा
खास- उल्लाला छन्द ला उल्लाल अउ चंद्रमणि छन्द घला कहिथें. रोला छन्द के बाद उल्लाला छन्द जोड़ के छप्पय छन्द बनाये जाथे.

अरुण कुमार निगम
एच.आई.जी. १ / २४
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़